साथियों आज के लेख के अंतर्गत हम महान राष्ट्रवादी विचारक स्वामी विवेकानंद(SWAMI VIVEKANAND) जी के जीवनी के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
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🔆 प्रस्तवना-
भारत एक ऐसा देश है जहां अनेक प्रकार के संतो और महापुरुषों ने जन्म लिया है। इसीलिए भारत देश को संत भूमि के नाम से भी जाना जाता है। आज हम एक ऐसे महापुरुष के बारे में बात करने वाले हैं जिन्होंने अपने कार्यों द्वारा विश्व भर में भारत का नाम रोशन करने का कार्य किया। उनके विचार इतने प्रभावशील थे कि आज भी वे लोगों के प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। आज हम जिस महापुरुष के बारे में बात करने वाले हैं उनका नाम है स्वामी विवेकानंद है। स्वामी विवेकानंद बचपन से ही कला ,साहित्य, धर्म, इतिहास ,दर्शन तथा सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में बहुत ही निपुण थे।
🔆 स्वामी विवेकानंद जी का जन्म-
विश्व भर में संत की उपाधि प्राप्त करने वाले स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था l घर का नाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कि कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत का कार्य करते थे और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनकी माता धार्मिक प्रवृत्ति वाली थी। स्वामी विवेकानंद अपनी माता के धार्मिक प्रभाव से काफी प्रभावित थे। बचपन से ही स्वामी विवेकानंद में परमात्मा को प्राप्त करने की लालसा प्रबल थी। संत मुनी वाले विचार उन्हें काफी प्रभावित करते थे। उनकी आर्थिक परिस्थिति बचपन से ही बहुत खराब थी। कभी-कभी तो उन्हें भूखा रहकर सोना पड़ता था।
🔆 गुरु रामकृष्ण परमहंस जी से मुलाकात-
रामकृष्ण परमहंस जी के आध्यात्मिक विचारों से स्वामी विवेकानंद काफी प्रभावित थे। एक बार वे परमहंस जी से मिलने के लिए गए। परंतु परमहंस जी ने देखते ही समझ लिया कि यह तो वही शिष्य है जिसकी तलाश उन्हें काफी वर्षों सेथी। इसके बाद विवेकानंद जी ने रामकृष्ण परमहंस जी को अपना गुरु मान लिया। विवेकानंद गुरू की सेवा में पूरी तरह से समर्पित हो गए। अंतिम क्षणों तक उन्होंने अपने गुरु का अच्छी तरह से सेवा सत्कार किया। वहीं से उनको आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ। गुरू की मृत्यु के बाद 25 वर्ष की आयु में उन्होंने गेरुआ वस्त्र धारण किया और पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की।
🔆 सन 1893 में शिकागों में भाषण-
1893 मे विश्व धर्म परिषद हो रही थी। इस धर्म परिषद में स्वामी विवेकानंद भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। जब उन्हें इस धर्म परिषद में बोलने का मौका मिला तो लोग उनके विचारों को सुनकर और देखकर अचंभित हो गए। इस परिषद में उन्होंने विश्व को हिंदू धर्म से परिचित कराया। किस प्रकार सनातन धर्म एक प्राचीन धर्म है इसकी संकल्पना भी उन्होंने इसी धर्म परिषद में लोगों के सामने स्पष्ट की। लोगों को अध्यात्म की तरह अग्रसर होने का पाठ भी स्वामी विवेकानंद ने इसी धर्म परिषद में दिया। इसी भाषण में उन्होंने लोगों को यह भी बताया कि जिस प्रकार अलग अलग नदियां एक महासागर में मिल जाती है उसी प्रकार विश्व के सभी धर्म अंत में ईश्वर तक ही पहुंचते हैं। इसीलिए हमें समाज में फैली बुराई, कट्टरता और सांप्रदायिकता को रोकना चाहिए।अमेरिका में कई जगह उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना भी की और कई लोग उनके साथ इस कार्य में जुड़े भी।
🔆 स्वामी विवेकानंद के विचार-
विवेकानंद जी बचपन से ही बहुत धार्मिक प्रवृत्ति के थे। शुरू से ही पुराण, महाभारत, भगवत गीता, रामायण जैसे विषयों में रुचि रखते थे। उनका मानना था कि धार्मिक विचार ही व्यक्ति को आगे ले जाने में काफी मदद करता है। स्वामी विवेकानंद की जी के विचारों में इतने तथ्य थे कि आज भी युवा वर्ग उनके विचारों का अनुकरण करता है। वे हमेशा से ही हिंदू विचारक बने रहें। उनके राष्ट्रवादी विचारों से महात्मा गांधी जी भी बहुत प्रभावित थे।
🔆 स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु-
ऐसा कहा जाता है कि 4 जुलाई सन 1902 में उन्होंने बेलूर मठ में 3 घंटे ध्यान साधना करते हुए अपने प्राणों को त्याग दिया।
🔆 निष्कर्ष-
आज भले ही स्वामी विवेकानंद हमारे बीच नहीं है पर उनके राष्ट्रवादी विचार , धर्म के प्रति आध्यात्मिक सोच , देशहित भावना आज के युवा वर्ग को सतत प्रेरित करती रहेगी।
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