jitiya vrat |जितिया(जीवितपुत्रिका) व्रत

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                            आज हम जितिया (जीउतिया )व्रत  कथा के बारे सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करेगे|

 

                                 

 

प्रस्तावना (jitiya vrat)

वैसे देखा जाए तो हमारे देश में अनेक प्रकार के त्योहार मनाये जाते हैं। हर त्योहार की एक खासियत होती है। हर एक त्योहार के पीछे एक विशेष रूप की कथा या कहानी होती है। इन्हीं त्योहारों में से एक त्योहार है जितिया  व्रत जो भारत के अन्य राज्यों  झारखंड, उत्तर प्रदेश ,बिहार और पश्चिम बंगाल में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। jitiya vrat

 

त्योहार की खासियत(Tyohar ki khasiyat)

यह उपवास  पूरे दिन बिना पानी पिए रखा जाता है। इसीलिए इसे निर्जला उपवास या व्रत  भी कहा जाता है। यह त्योहार सुहागन स्त्रियां अपने बच्चों की लंबी आयु, सुखी जीवन और अरोग्य के लिए रखती है।3 दिन तक चलने वाले इस त्योहार में पहले दिन नहाए खाए(सप्तमी तिथी) दूसरे दिन जितिया व्रत (अष्टमी)और तीसरे दिन (नवमी) को व्रत खोला जाता है। कही -कही यह त्योहार एक दिन का होता है।इस व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है। पहले दिन अर्थात नहाए खाए वाले दिन सूर्यास्त के बाद स्त्रीयां कुछ भी खाना नहीं खाती है।

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जितिया से संबंधित अनेक कथाएं(Jitiya se sambandhit kathaye)

पहली कथा

 

यह कथा महाभारत के युद्ध से संबंध रखती है। इस कथा के अनुसार जब महाभारत के युद्ध के दौरान अश्वत्थामा नामक हाथी मारा गया लेकिन ऐसी खबर फैलाई गई थी अश्वत्थामा मारा गया। तब यह खबर सुनते ही अश्वत्थामा के पिता द्रोणाचार्य ने पुत्र शोक में धनुष और बाण को नीचे डाल दिया। इस अवसर का फायदा उठाकर द्रोपदी के भाई द्रुपद ने द्रोणाचार्य का वध कर दिया। अपने पिता की मृत्यु की खबर सुनकर अश्वत्थामा अत्यधिक क्रोधित हुआ। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए वह रात के अंधेरे में पांडवों के शिविर में जा पहुंचा। उसने पांडवो के पांचों पुत्रों को सोया देखा तथा उन्हें पांडव समझ लिया और उनके पांचों पुत्रों की हत्या कर दी। परिणाम स्वरूप पांडवों को अत्यधिक क्रोध आ गया। इसके पश्चात पांडव (अर्जुन) और अश्वत्थामा में एक भीषण युद्ध होता है। इस युद्ध में अपने आप को पराजित देखकर अश्वत्थामा ने  ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करके उत्तरा के  गर्भ में पल रहे बच्चे की जान ले लेता है। भगवान श्रीकृष्ण इस बात से भलीभांति परिचित थे कि ब्रह्मास्त्र को रोक पाना असंभव है लेकिन उन्हें उत्तरा के पुत्र की रक्षा करना अति आवश्यक लगा। इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्य शक्तियों का उपयोग करके उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चों को नया जीवनदान प्रदान किया। यह बच्चा आगे चलकर राजा परीक्षित बना।  बच्चें के दोबारा जीवित हो जाने के कारण इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका व्रत पड़ा। तब से लोग अपने पुत्र के स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए जीवित्पुत्रिका का व्रत करने लगे।

 

दूसरी कथा

 

एक दूसरी कथा के अनुसार, एक गरुड़ और एक मादा लोमड़ी मे गहरी मित्रता थी। ये दोनों नर्मदा नदी के पास एक जंगल में एक पेड़ के पास एक साथ रहा करते थे। एक बार उन दोनों ने नदी के पास कुछ महिलाओं को पूजा करते और उपवास करते  हुए देखा। यह दृश्य देखकर उन दोनों के मन में उपवास और व्रत करने की कामना जागृत हुई।उपवास वाले दिन लोमड़ी भूख को बर्दाश्त नहीं कर पाई। इसलिए उसने चुपके से भोजन कर लिया। परंतु गरुड़ ने पूरे श्रद्धा और भक्ति के साथ उपवास और व्रत का पालन किया और उसे पूरा किया। परिणाम स्वरूप दोनों ने  सगी बहनों के रूप में एक ब्राह्मण के घर जन्म लिया। बड़ी बहन (गरुण) शीलवती और छोटी बहन (लोमड़ी)कपूरावती के रुप में जन्मी। आगे चलकर इन दोनों का विवाह एक ही राजघराने में हुआ। कुछ दिनों के पश्चात शिलवती को एक-एक करके 7 लड़के पैदा हुए जबकि कपूरावती से पैदा होने वाले सभी बच्चे मर जाते हैं। बाद में शिलवती के सभी लड़के राजा के दरबार में काम करने लगे यह देखकर कपूरावति के मन में बहुत इर्ष्या पनपी। उसने राजा को कहकर शीलवती के सभी बेटों के सर काट दिए और उन सात सिरों को बर्तन मंगा कर उसमें रख दिया और लाल कपड़े से ढककर शिलवती  के पास भिजवा दिया। यह देखकर भगवान जीमूतवाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों के सर बनाएं और सभी के सिरों को उसके धड़ से जोड़ कर उन पर अमृत क्षिणक कर उन्हें पुनः जिंदा कर दिया ।इस घटना के पश्चात जितिया व्रत का पर्व शुरू हुआ |

 

तीसरी कथा
 

 

इस कथा के अनुसार, जीमूतवाहन, गंधर्व नामक राज्य के एक बुद्धिमान राजा थे। वे राजा के पद से अत्यधिक  असंतुष्ट थे। परिणाम स्वरूप उन्होंने अपने भाइयों को राज्य की पूरी जिम्मेदारी सौंप कर अपने पिता की सेवा के लिए जंगल चले गए। जंगल में भटकते समय उन्हें एक बुढ़िया विलाप करते हुए नजर आई। जीमूतवाहन ने उस बुढ़िया से रोने का कारण पूछा। उस बुढ़िया ने बताया कि वह नागवंशी परिवार से है, और उसका एक ही बेटा है। उसने बताया कि एक शर्त के अनुसार हर दिन पक्षी गरुड को सांप चढ़ाया जाता है और आज मेरे बेटे का नंबर है। यह सुनकर जीमूतवाहन बड़े आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने बुढ़िया को आश्वासन दिलाया कि वह उनके बेटे की रक्षा करेंगे, और पक्षी गरुड का वे  स्वयं भोजन बनेंगे। इसके बाद गरुण आता है और अपनी अंगुलियों से लाल कपड़े में ढके जिमूतवाहन को पकड़कर चट्टान पर चढ़ जाता है। गरुड़ के इस कार्य से जीमूतवाहन  जरा भी घबराते नहीं है ,और वे किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं देते हैं। जब पक्षी गरुड जीमूतवाहन से उनकी पहचान पूछता है तब उस समय जीमूतवाहन पूरे दृश्य का वर्णन करते हैं। जीमूतवाहन की वीरता और परोपकर से प्रसन्न होकर आगे से कोई और बलिदान नहीं लेने का वादा पक्षी गरुड करते हैं। इस घटना के पश्चात जितिया व्रत का त्योहार मनाना शुरू किया गया।


निष्कर्ष(Nishkarsh)

 

जितिया का व्रत पुत्र की लंबी आयु के साथ- साथ घर मे सुख, समृद्धि प्रदान करने वाला त्योहार है |

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