आज हम सजीवों मे जीवन प्रक्रिया भाग-2 इस पाठ के महत्वपूर्ण मुद्दों के बारें मे जानकारी प्राप्त करेगे |
1)प्रजनन
एक सजीव से उसी प्रजाति का नया सजीव बनने की प्रक्रिया को प्रजनन कहते हैं। प्रत्येक प्रजाति के उत्क्रांति के लिए जिम्मेदार घटकों में प्रजनन एक महत्वपूर्ण घटक है।
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2)प्रजनन के प्रकार
i)अलैगिक प्रजनन
युग्माण का निर्माण किए बिना किसी प्रजाति के एक ही सजीव ने अपने समान नवजात सजीव निर्माण के लिए अपनाई हुई प्रक्रिया को अलैंगिक प्रजनन कहते हैं। दो भिन्न कोशिकाओं के सहयोग के बिना यह प्रजनन होता है। इसीलिए नवजात सजीव बिल्कुल मूल सजीव के जैसा ही होता है। यह तीव्र गति से होने वाला प्रजनन है।
ii)लैंगिक प्रजनन
यह प्रजनन दो जनक कोशिकाओं की सहायता से होता है। यह प्रजनन दो भिन्न कोशिकाओं के सहयोग से होता है।
3)एक कोशिकीय सजीव में अलैंगिक प्रजनन
i)द्विविभाजन
a) यह विभाजन प्रायः अनुकूल परिस्थितियों में होता है।
b) इसमें जनक कोशिका दो समान संतति कोशिका में विभाजित हो जाती है।
c) यह समसूत्री विभाजन अथवा असमसूत्री विभाजन द्वारा संपन्न होता है।
d) इस विभाजन के अंतर्गत विभाजन का अक्ष भिन्न-भिन्न हो सकता है जैसे साधारण, क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर
उदाहरण-
साधारण विभाजन: जीवाणु और अमीबा
क्षैतिज विभाजन: पैरामिशियम
ऊर्ध्वाधर विभाजन :तंतु कणिका और हरित लवक
ii)बहु विभाजन
इस विभाजन के अंतर्गत जनक कोशिका दो से अधिक समान संतति कोशिका में विभाजित हो जाती है। उदाहरण- अमीबा
इस विभाजन के अंतर्गत अमीबा जैसे जीव प्रतिकूल परिस्थिति में अपने कोशिका पटल के चारों तरफ कठोर संरक्षक पुटी तैयार करते है। पुट्टी के भीतर केंद्रक में लगातार कई बार समसूत्री विभाजन होने से अनेक केंद्रको का निर्माण होता है। अनुकूल परिस्थिति आने पर पुट्टी का आवरण फट जाता है और उसमें कई शिशु अमीबा मुक्त हो जाते हैं।
3)मुकुलन
इसके अंतर्गत जनक कोशिका का समसूत्री विभाजन द्वारा विभाजन होने के बाद दो नवजात केंद्रक बनते हैं। जनक कोशिका के आवरण पर एक छोटा सा उभार ऊपर आता है। यह उभार मुकुल कहलाता है। पर्याप्त वृद्धि होने के बाद नवजात केंद्रक मुकुल में प्रवेश करता है तथा जनक कोशिका से अलग हो जाता है।
उदाहरण –यीस्ट कोशिका, एक कोशिकीय कवक
4) बहुकोशिकीय सजीवों में अलैंगिक प्रजनन
i)खंडी भवन
इसके अंतर्गत जनक कोशिका छोटे-छोटे खंडों में विभाजित हो जाती है। आगे चलकर प्रत्येक खंड स्वतंत्रता पूर्वक जीवन यापन करने लगता है।
उदाहरण-
स्पायरोगायरा और साइकॉन
साइकॉन की शरीर के अगर किसी घटना में छोटे-छोटे टुकड़े हो जाते हैं तो प्रत्येक टुकड़े से नए साइकॉन का निर्माण होता है।
ii)पुनर्जनन
कुछ प्राणी विशिष्ट परिस्थिति में स्वयं के शरीर के दो टुकड़े करते हैं और प्रत्येक टुकड़े से शरीर का बचा हुआ हिस्सा नए से दो नवजात प्राणी निर्माण करते हैं इस प्रक्रिया को पुनर्जनन कहते हैं।
उदाहरण -प्लेनेरिया
iii) शाकीय प्रजनन
वनस्पतियों में जड़, तना ,पत्ती तथा कलियों जैसे शाकीय अंगो से होने वाले प्रजनन को शाकीय प्रजनन कहते हैं।
गन्ना ,घास इन जैसी वनस्पतियों में गाठों पर पाए जाने वाले मुकलों की सहायता से शाकीय प्रजनन होता है।
आलू में शल्क पत्रों के कक्ष में पाई जाने वाली कालिकाओ या घातपर्ण पर वनस्पति के पत्तियों के किनारे पर पाए जाने वाले खांचों की कालिकाओं की सहायता से शाकीय प्रजनन होता है।
iv)बीजाणु का निर्माण
तंतुमय शरीर पर स्थित बीजाणुधानी के फूटने पर एक बीजाणु मुक्त होते हैं। बीजाणु का अंकुरण नमी मिलने पर उचित तापमान में होता है ।उनसे नए कवक जाल का निर्माण होता है।
उदाहरण :म्यूकर जैसे कवक
5)लैंगिक प्रजनन
लैंगिक प्रजनन सदैव दो जनक कोशिकाओं की सहायता से होता है। वे दो जनक कोशिका अर्थात स्त्री युग्मक और पुयुग्मक है।
i)युग्मक का निर्माण
इस पद्धति में अर्धसूत्री विभाजन द्वारा गुणसूत्र की संख्या पहले की तुलना में आधी होकर अर्ध गुणी युग्मक की निर्मिती होती है। इसीलिए यह जनक कोशिका अगुणित (haploid) होती हैl
ii) फलन या निषेचन
इस पद्धति में स्त्री युग्मक और पुयुग्मक इन अगुणित कोशिकाओं का संयोग होकर एक द्विगुणित युग्माणु की निर्मिती होती है इसे फलन या निषेचन कहते हैं। यह युग्माणु समसूत्री विभाजन से विभाजित होकर भ्रूण तैयार करता हैl
6)वनस्पतियों में लैंगिक प्रजनन
i)पुष्प के अलग-अलग भाग
बाह्यदलपुंज, दलपुंज , पुमंग और जायांग। इनमें पुमंग और जायांग प्रजनन का कार्य करते हैं ।इसीलिए इन्हें आवश्यक मंडल कहते हैं।
बाह्य दल पुंज और दल पुंज आंतरिक मंडलों की सुरक्षा करते हैं इसीलिए इन्हें अतिरिक्त मंडल कहते हैं।बाह्यदलपुंज के घटक दलों को पिच्छक कहते हैं। वह हरे रंग के होते हैं। दलपुंज के घटक दलों को पंखुड़ी कहते हैं।
ii)पुष्प के विभिन्न प्रकार
उभयलिंगी:एक ही पुष्प में पुमंग तथा जायांग यह दोनों चक्र विद्यमान होते हैं। उदाहरण गुड़हल
एक लिंगी: एक पुष्प में पुमंग या जायंग दोनों में से एक चक्र विद्यमान होता है। उदाहरण पपीता
पुष्पवृत या पुष्पाधार: ऐसे पुष्पों में आधार देने के लिए वृंत होता है।
स्थानबद्ध पुष्प: ऐसे पुष्पों में आधार देने के लिए वृंत नही होता है।
iii )परागण या परागीभावन
पराग कोष के परागकण स्त्रीकेसर के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित होते हैं इसी प्रक्रिया को परागीभावन कहते हैं।
iv)परागकण के प्रकार
स्वपरागण: जब परागण की क्रिया एक ही फूल में या एक ही पौधे के दो भिन्न फूलों में होती है तो इसे स्वपरागण कहते हैं।
पर परागण: एक ही जाति की दो अलग-अलग वनस्पतियों के फूलों में होने वाले परागण को पर परागण कहते हैं
7) पुरुष प्रजनन संस्थान
i) अंग– वृषण (जोड़ी में)
रचना -वृषण उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में स्थित होता है।
कार्य- शुक्राणुओं का निर्माण करना
ii) अंग – विविध वाहिनी/नलिका
रचना – वृषण जालिका ,अप वाहिनी, अधि वृषण, शुक्र नलिका, स्खलन वाहिनी, मूत्र जनन वाहिनी
कार्य – शुक्राणु एक नलिका से दूसरी नलिका में भेजे जाते है |इस समय अंतराल में शुक्राणु परिपक्व हो जाते हैं तथा निषेचन के लिए योग्य बन जाते है |
iii) अंग – ग्रंथियां
रचना– शुक्रशाय, प्रोस्टेट ग्रंथि, कॉऊपर ग्रन्थि
कार्य – मूत्र नलिका में स्राव छोड़ा आ जाता है।
सभी स्राव +शुक्राणु=वीर्य
iv) अंग– शिश्न/ मूत्र जनन वाहिनी
रचना– मूत्र तथा शुक्राणुओं का वाहन करने वाला मार्ग
कार्य -वीर्य शिश्न के माध्यम से बाहर छोड़ा जाता है। मूत्र जनन वाहिनी वीर्य तथा मूत्र दोनों का एक ही मार्ग है
8)स्त्री प्रजनन संस्थान के अंग तथा कार्य
i)अंग– अंडाशय (जोड़ी में)
रचना– निचले उदर गुहा में
कार्य – अंड कोशिका की उत्पत्ति, स्त्री हार्मोन (estrogen, progesterone)का स्राव
ii) अंग -अंडनलिका
रचना– फनेल जैसा स्वतंत्र सिरा मध्य भाग में एक छिद्र
निषेचन के लिए मध्य भाग
तृतीय भाग गर्भाशय में खुलता है
संपूर्ण आंतरिक भाग में रोमक पेशी
कार्य–अंड कोशिका का गर्भशय मे संवहन
iii) अंग– गर्भाशय
रचना -निचले उदर गुहा के मध्य में
कार्य -गर्भ की वृद्धि तथा विकास, शिशु के जन्म की प्रक्रिया
iv) अंग-योनि
रचना-गर्भाशय का बाहरी भाग
कार्य-संभोग तथा शिशु के जन्म का मार्ग
v) अंग-बार्थोलिन ग्रन्थि
रचना-स्त्री के योनि की दीवार पर उपस्थित होती है।
कार्य-योनि का संरक्षण करना तथा उसमें स्नेहक उत्पन्न करना।
9)रोचक जानकारी
अधिवृषण नलिका की लंबाई 6 मीटर होती है।
एक शुक्राणु की लंबाई 60 माइक्रोमीटर होती है।
शुक्राणु को पुरुष प्रजनन संस्थान के बाहर निकलने पर लगभग 6.5 मीटर लंबाई की दूरी तय करनी पड़ती है।
शुक्राणु को बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है इसीलिए वीर्य में फ्रुक्टोज नामक शर्करा होती है।
10)युग्माणू का निर्माण
शुक्राणु और अंड कोशिका ये दोनों ही युग्मणू अर्धसूत्रीविभाजन से निर्मित होते हैं।
पुरुष के वृषण में योना अवस्था से मृत्यु तक शुक्र कोशिकाओं का निर्माण होते रहता है।
जन्म के समय स्त्रियों के अंडाशय में दो से चार दस लाख इतनी बड़ी संख्या में अंड कोशिकाएं (डिंब)होती हैं।
स्त्री के अंडाशय में योना अवस्था से आगे मासिक धर्म रुक जाने की उम्र तक (45 वर्ष) हर महीने में एक अंडे कोशिका तैयार होती है
सामान्यता 45 से 50 वर्ष के दौरान स्त्री के शरीर में प्रजनन संस्थान के कार्य को नियंत्रित करने वाले के संप्रेरक का स्राव रुक जाता है इसलिए मासिक धर्म रुक जाता है।
11)निषेचन या फलन
संभोग के समय स्त्री के योनि मार्ग में वीर्य छोड़ दिया जाता है। वीर्य में असंख्य मात्रा में शुक्राणु होते हैं। ये शुक्राणु अंड कोशिका (डिंब)से संयोग करके युग्मणू का निर्माण करते हैं। इस प्रक्रिया को निषेचन या फलन कहते हैं
ध्यान दें स्त्रियों में मासिक धर्म रुकने तक 2 से 4 दास लाख अंड कोशिकाओं में से सिर्फ केवल 400 ही अंडकोशिका अंडाशय से बाहर निकलते हैं बाकी बची सारी अंड कोशिकाएं नष्ट हो जाती है।
12) मानव में लिंग निर्धारण
पुरुष के अंदर XY तथा स्त्री के अंदर XX गुणसूत्र पाए जाते हैं। जब पुरुष का X गुणसूत्र का निषेचन अंड कोशिका(X) के साथ होता है तो पुत्री का जन्म होता है। जब पुरुष के Y गुणसूत्र का निषेचन अंड कोशिका(Y) के साथ होता है तब पुत्र का जन्म होता है। अर्थात हम यह कह सकते हैं लिंग निर्धारण में पुरुष की भूमिका अहम होती है ना कि महिला की भूमिका।
13) मासिक धर्म
मासिक धर्म चक्र चार प्रकार के हार्मोन द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं।
पुटिका ग्रंथि सांप्रेरक(FSH या follicle stimulating hormone)
पीतपिंडकारी संप्रेरक(LH या luteinizing hormone)
इस्ट्रोजन (ESTROGENE)
प्रोजेस्टरोंन(PROGESTERONE)
14)आधुनिक प्रजनन की पद्धतियां
a) काँच नलिका में निषेचन
इसके अंतर्गत काँच नलिका में निषेचन की क्रिया कराई जाती है।
बाद में भ्रूण को स्त्री के गर्भ में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।
इस प्रक्रिया का उपयोग तभी किया जाता है जब पुरुष के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या में कमी हो या स्त्री के अंड नलिका में स्थित डिंब के प्रवेश के लिए रुकावट हो।
b)स्थापन्न मातृत्व
इस प्रक्रिया के अंतर्गत अंडाशय में से डिंब इकट्ठा कर लिया जाता है तथा पति के शुक्राणुओं द्वारा कांच नलिका में निषेचन की प्रक्रिया कराई जाती है। निषेचित भ्रूण को अन्य स्त्री के गर्भ में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है जिसने अपने गर्भ को किराए पर दिया है।
इस प्रक्रिया का तब उपयोग किया जाता है जब स्त्री के गर्भ में भ्रूण प्रत्यारोपण करने में समस्या हो।
c)वीर्य बैंक
इसके अंतर्गत स्खलित वीर्य का संग्रह वीर्य बैंक में किया जाता है। इस वीर्य का उपयोग IVF पद्धति द्वारा डिंब को निषेचित करने के लिए किया जाता है।
इस पद्धति का उपयोग तब किया जाता है जब पुरुष वीर्य के उत्पादन में आने में समस्या हो
15)पुरुष में बंध्यता के कारण
वीर्य में शुक्राणु का कमी होना|
शुक्राणु की मंद गति|
शुक्राणुओं में विद्यमान विभिन्न दोष|
16)स्त्रियों में बंध्यता के कारण
मासिक धर्म चक्र में अनियमितता |
डिंब के उत्पादन में कठिनाई |
अंडनलिका में डिंब के प्रवेश को लेकर रुकावटें|
गर्भाशय के गर्भ रोपड़ की क्षमता में कमी।
17)जुड़वाँ
गर्भाशय में एक ही समय दो भ्रूणों की वृद्धि होने पर 2 शिशुओं का एक साथ जन्म होता है तो ऐसे शिशुओं को जुड़वाँ कहते है।
जुड़वाँ के मुख्यतः तीन प्रकार होते हैं|
a)एक युग्मनज जुड़वाँ
एक युग्मनज में जुड़वाँ संतान एक ही युग्मनज से बनती है। भ्रूण विकास के शुरू के समय में ( युग्मनज तैयार होने के 8 दिनों के भीतर) उसकी कोशिका अचानक दो समूहों में विभाजित हो जाती है इस भ्रूण कोशिका के दोनों समूह अलग-अलग भ्रूण के रूप में बढ़ने लगते हैं और पूर्व वृद्धि होने पर एक युग्मनज जुड़वाँ जन्म लेते हैं। ऐसी जुड़वाँ संतान जनुकीय दृष्टि से बिल्कुल समान होती है। इसीलिए संतान एक दूसरे के समान दिखाई देते है।
लिंग भी समान होता है
b)संयुक्त जुड़वाँ
यदि जुड़वाँ बच्चों के अंग एक दूसरे से जुड़े होते हैं तो ऐसे जुड़वाँ बच्चों को संयुक्त जुड़वाँ कहते हैं। यदि भ्रूण कोशिका का विभाजन युग्मनज तैयार होने के 8 दिनों के बाद हो तो ऐसी परिस्थिति में संयुक्त जुड़वाँ संतान जन्म लेती हैं| संयुक्त जुड़वाँ संतान एक दूसरे से किसी अंग द्वारा जुड़ जाते हैं।
c)द्वियुग्मनज जुड़वाँ
जब स्त्री के अंडाशय से एक ही समय में दो डिंब बाहर अंडर नलिका में छोड़े जाते हैं तथा उन दोनों डिब्बों का अलग-अलग शुक्राणुओं द्वारा निषेचन हो कर दो भिन्न युग्मनज तैयार होते हैं ।तब द्वियुग्मनज जुड़वाँ तैयार होते हैं। ऐसी जुड़वाँ संतान जन्म की दृष्टि से भिन्न हो सकती है तथा लैंगिक दृष्टि से समान या असमान हो सकती है।
18) लैंगिक स्वास्थ्य
शारीरिक ,मानसिक और सामाजिक दृष्टि से व्यक्ति का अच्छी तरह से रहना ही स्वास्थ्य कहलाता है।
भारत में लैंगिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता कम है।
जननांग या गुप्तांग की सफाई करने से लेकिन स्वास्थ्य उत्तम रखा जा सकता है।
सिफीलिस तथा गोनोरिया लैंगिक संबंध या जीवाणु द्वारा उत्पन्न रोग हैl ऐसे रोग लोगों को बड़े पैमाने पर संक्रमित करते हैं।
सिफीलिस के लक्षण: गुप्तांगो, जननांगों सहित शरीर के अन्य भागों पर छाले पड़ना, बुखार आना, जोड़ों में सूजन, बालों का झड़ना, फुंसियां आना इत्यादि
गोनोरिया के लक्षण: पेशाब करते समय जलन और दर्द होना, शिश्न और योनि मार्ग से पिब निकलना, मूत्र मार्ग, गुदाशय, गला ,आंख इन अंगों में सूजन आना
19)जनसंख्या विस्फोट
अत्यंत कम समय में बहुत अधिक मात्रा में जनसंख्या में होने वाली वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट कहते हैं।
भारत में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है ।इस कारण बेरोजगारी में बढ़ोतरी, प्रति व्यक्ति की आय और कर्ज, प्राकृतिक संसाधन पर पड़ने वाले दबाव इत्यादि कई समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।
इन समस्याओं का सिर्फ एक ही उपाय है जनसंख्या नियंत्रण। कुटुंब नियोजन का उपाय अपनाकर बढ़ती हुई जनसंख्या पर नियंत्रण पाया जा सकता है|
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