आज हम भाई बहनों का महत्वपूर्ण त्योहार रक्षाबंधन के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेगे।
रक्षाबन्धन – भाई-बहनों का त्यौहार
रक्षाबन्धन का तात्पर्य रक्षा के लिए बन्धन से है अर्थात् जिसके हाथ पर रक्षा (राखी )बांधी जाती है। वह बांधने वाले की रक्षा के लिए वचनबद्ध हो जाता है। रक्षाबन्धन का त्यौहार मास की पूर्णिमा को मनाया जाने के कारण श्रावणी भी कहलाता है। । इस दिन बहनें अपने भाई को रक्षा सूत्र बांधती हैं।
ऐसा माना जाता है कि रक्षाबंधन का त्यौहार गुरु -शिष्य से सभी जोड़ा गया है जब शिष्य पढ़ाई करने के लिए आश्रम में पहले दिन जाता था तब शिष्य गुरु के हाथ में रक्षा बांधकर अपने जीवन का संपूर्ण भार गुरु को समर्पित कर देता था |
भारत देश में यह त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता हैं। हिन्दुओं की देखा-देखी अन्य धर्मों व वर्गों के लोगों ने भी इस त्यौहार को अपनाना शुरू कर दिया है। ऐसा इसलिए कि यह त्यौहार धर्म और संबंध की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। धर्म की दृष्टि से यह जहां गुरु-शिष्य के परस्पर नियम सिद्धान्तों सहित उनके परस्पर धर्म को प्रतिपादित करनेवाला है। वहीं संबंध की दृष्टि से यह त्यौहार भाई-बहन के परस्पर संबंधों की गहराई को प्रकट करने वाला एक श्रेष्ठ त्यौहार है। इस दिन बहन भाई के लिए मंगल कामना करती हुई उसे राखी (रक्षा सूत्र) बांधती है। भाई उसे हर स्थिति से रक्षा करने का वचन देता है। इस प्रकार रक्षा बंधन भाई-बहन के पावन स्नेह का त्यौहार है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी इस त्यौहार की महानता है। मध्यकालीन भारत के मुगलकालीन शासन काल से इसका संबंध है। इस काल में जब गुजरात के शासक बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया तो महारानी कर्मवती अपनी सुरक्षा का कोई रास्ता न देखकर दुखी हुई। उसने और कोई उपाय न देख हुमायूं के पास रक्षा बंधन का सूत्र भेजा और अपनी सुरक्षा के लिए उसे भाई शब्द से संबोधित करते हुए प्रार्थना की। बादशाह हुमायूं कर्मवती द्वारा ऐसा करने से बहुत ही प्रभावित हुआ। बादशाहो हुमायूं एक बड़ी सेना लेकर बहन कर्मावती की रक्षा करने के लिए चित्तौड़ पहुंच गया।
आज रक्षा बंधन का त्यौहार समस्त भारत में बहुत खुशी और स्नेह भावना के साथ प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहनें पवित्र भावनाओं के साथ अपने भाइयों को टीका लगाकर मिष्ठान खिलाती हैं तथा वे उनकी आरती उतार कर उनको राखी (रक्षा-सूत्र) बांधती हैं। भाई यथाशक्ति उपहार स्वरूप बहनों को कुछ न कुछ अवश्य भेंट करता है। गुरु, आचार्य पुरोहित आदि ब्राह्मण प्रवृत्ति के व्यक्ति अपने शिष्य और यजमानों के हाथ में रक्षा-सूत्र बांधकर उन्हें आर्शीवाद देते हैं। इस अवसर पर यजमान उन्हें दान आदि देते हैं।